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Saturday, June 4, 2011

अनशन होकर रहेगा

समझ नहीं आता कि विनोद दुआ बाबा का समर्थन कर रहे है या विरोध। जब भी कभी बाबा रामदेव अपनी आवाज बुलंद करते हैं वहीं विनोद दुआ उनकी टांग खींचने के लिए तैयार हो जाते हैं। और टीवी पर ऐसी ऐसी दलील देते हैं जिनका कोई औचित्य नहीं होता, कोई सीनियर पद्मश्री पत्रकार ऐसी बातें करे तो शोभा नहीं देता। आज तो हद ही हो गई, सीधा प्रहार करने की हिम्मत नहीं हुई तो शाह रुख को सामने लाकर खड़ा कर दिया। और शाह रुख ने क्या क्या कहा वह सब अपनी जुबान में बयां किया। भई शाहरुख कौन होता है बाबा के अनशन के बारे में कहने वाला। शायद विनोद दुआ शाहरुख खान की लोकप्रियता को भुनाना चाह रहे थे। और खान के कंधे पर रख कर बाबा रामदेव पर गोली चला रहे थे।

आप विनोद दुआ हमेशा बाबा को योग तक ही सीमित रहने की सलाह देते आए हैं और राजनीति से दूर रहने की सलाह देते आए हैं। और उनकी तुलना देश के तमामा छोटे छोटे महंत बाबाओं से करते आए हैं। शायद आपको रास नहीं आता कि किसी बाबा को इतनी लोकप्रियता मिले। लेकिन शाहरुख को इस पचड़े में लाने का क्या मतलब था उनसे क्यों नहीं कहा कि आप फिल्मों तक ही रहें। लोगों की शादियों और पार्टीयों में नाचें आपका वही काम है। बाबा पर सीधी टिप्पड़ी तो कर नहीं सकते। शाहरुख आजकल के लोंडे लोंडियों में पूजे जाते हैं तो क्यों न इन्हीं के सहारे बाबा पर हमला किया जाए।

बाबा तो बाबा आपने अन्ना को भी नहीं बख्शा, उनको अनपढ़ तक कह डाला। अग्निवेश से सवाल करते समय आपने यह तक पूछ डाला ''जिस तरह अन्ना को इंगलिश नहीं आती क्या उसी तरह वे हिंदी में भी कमजोर हैं''। और उनके बाबा के अनशन में शामिल होने के सवाल पर यहां तक कह डाला कि ''अगर अन्ना गए तो वे बिन बुलाए मेहमान होंगे''। क्या उनको इतना नहीं पता कि जिस कारण बाबा अनशन पर बैछ रहे हैं वह उनकी निजी समस्या नहीं है। वह देश की समस्या है और देश के हर नागरिक का उससे सरोकार है। वहां बुलाने और न बुलाने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। वहां पूरे देश को एकत्रित होना चाहिए।

बाबा और अन्ना जिस उद्देश्य के साथ मैदान में उतरे हैं वह उनका या उनके परिचितों का कोई निजी स्वार्थ नहीं है। वह देश हित में है यह पबात हर देश वासी भली भांति जानता होगा। आज जिस तरह से भ्रष्टाचार देश की जड़ों में पैर जमाए बैठा हुआ है। जिस तरह देश का पैसा टैक्स हैवन कंट्रीज में भेजा जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार अब तक 18000 अरब रुपए व्लैक मनी देश से बाहर जा चुका है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 1948-2008 तक 20 लाख करोड़ रुपए देश से बाहर जा चुका है, और वर्ल्ड बैंक के अनुसार देश के भीतर 15 लाख करोड़ रुपए ब्लैक मनी की पैरेलल इकॉनमी चलती है। 66446 अरब रुपए स्विस बैंकों में जमा हैं। वहीं 465-517 अरब रुपए ब्लैक मनी देश में चुनाव के दौरान पनपती है। वहीं अगर भ्रष्टाचार की बात करें तो देश के 54% लोगों ने स्वीकारा है कि उन्होने अपने काम को करवाने के लिए घूस का सहारा लिया है। देश का हर तंत्र आज भ्रष्ट है चाहे वह पॉलिटिक्स हो, पुलिस हो, ज्यूडिसरी हो, एनजीओ हो,प्राइवेट सेक्टर हो, गवर्मेंट सेक्टर हो। आज देश विश्व के सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में 87वें पायदान पर आ गया है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं 178 वें पायदान पर पहुंच कर नाम रोशन करे। और जब हम घर से बाहर निकलें तो सर नीचा हो। इससे पहले कि कोई ऐसा दिन आए जागो नागरिक जागो। वैसे इस देश में नागरिक अब उपभोक्ता हो चला है। खैर कुछ भी हो लेकिन वह रहेगा नागरिक ही। भला अब भी कोई वजह बचती है इन मुद्दों के खिलाफ न खड़े होने की।

मैं बाबा और अन्ना को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता लेकिन इतना जरूर समझता हूं कि आज जिस कारण वे खड़े हुए हैं। उसमें मेरा और मेरे देश का हित निहित है। और मैं उनका समर्थन करता हूं।

Monday, May 30, 2011

लखनऊ से दिल्ली

जून की भीषण गर्मी पड़ रही है, मौसम गर्म है, लू चल रही है, कोई घर से निकलना

ही नहीं चाहता। लेकिन इस गर्मी का असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर बिल्कुल भी नहीं

है। विधान सभा चुनाव होने में अभी पूरा एक वर्ष बाकी है लेकिन चुनावी बिसात बिछ चुकी

है। सभी दल तैयारियौं में जुट गए हैं मानो चुनाव होने वाले हों। उत्तर प्रदेश की 403 विधान

सभा सीटों वाली विधान सभा के लिए सभी ने अपने प्रत्याशियों की सूची तैयारी करनी शुरू

कर दी है। सभी को लखनऊ की कुर्सी चाहिए, दिल्ली का रास्ता जो लखनऊ से होकर जाता

है। निशाना सिर्फ 2012 उप्र चुनाव नहीं है चूंकि उत्तर प्रदेश भारतीय संसदीय राजनीति

का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां से लोकसभा की 543 में से 80 सीटों का चयन होता जो किसी भी

अन्य प्रदेश से ज्यादा हैं। चुनाव 2012 के परिणाम आम चुनाव 2014 की दिशा तय करेंगे कि

उत्तर प्रदेश का समर्थन किसे मिलने वाला है। इसलीए कोई भी दल कोई मौका छोड़ना नहीं

चाहता वोटरों को लुभाने के लिए। उत्तर प्रदेश की राजनीति ही ऐसी है कि हवा किस ओर

चलेगी और जनता किसे चुनेगी कुछ नहीं कह सकते।

लेकिन उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड रहा है, पिछले दो दशकों में सत्तारुढ़ दल कभी सत्ता

में वापस नहीं आया। और न ही किसी मुख्यमंत्री ने अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया

है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का तकाजा ही यही है। यहां की राजनीति विकास, सुशासन,

भ्रष्टाचार मुक्त शासन, और कानून के भरोसे न चलकर धर्म सम्प्रदाय और जाति के

आधार पर चलती है। यही वजह है कि आजादी के बाद पिछले दो दशकों में कांग्रेस उत्तर

प्रदेश की सत्ता पर कभी काबिज नहीं हो पाई। लेकिन बनारस में हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस

कमैटी के 83वे अधिवेशन को देखकर लगता है कि कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन

वापस पाना चाहती है। पिछले 22 वर्षों मे उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रदेश में हाशिए पर पहुंच

गई है। और अब कांग्रेसी इसमें दोबारा जान फूंकने में जुट गए हैं। अधिवेशन को देखकर तो

ऐसा ही लगता है। सोनिया गांधी ने पहली बार सीधे तौर पर मायावती को निशाना बनाया।

ऐसा पहली बार हुआ था कि सोनिया ने सीध मायावती पर टिप्पड़ी की हो। उन्होने कहा जो

उत्तर प्रदेश अपने गौरवमयी इतिहास, कला, कवि, शायरों के लिए जाना जाता था वह अब

अपराधियों की शरण गाह बन गया है। उत्तर प्रदेश अब क्राइम प्रदेश के नाम से जाना

जाता है। वहीं राहुल गांधी ने अपने आप को किसानों और मजदूरों का नेता बताया और कदम

कदम पर उनका साथ देने का वायदा किया।

उन्होंने प्रदेस की कानून व्यवस्था, विकास के सवाल पर जनता का सहयोग मांगा और कहा

कि मैं अब गांव गांव जाऊंगा और लोगों की आवाज बनूंगा।

निश्चित रूप से कांग्रेस इन सवालों को लेकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में पूरे

जोश ओ खरोश के साथ उतरना चाहती है। और इन्हीं सवालों के जरिए अपनी आक्रामक और

जन सरोकारी छवि बनाकर अपने कार्यकर्ताओं मे नई जान फूंकनाचाहती है। जिससे पिछले

22 सालों से हाशिए पर पड़ी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में ला

सके।

जिस वक्त कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था वहीं दूसरी ओर दिल्ली के नजदीक नोएडा

का भट्टा परसोल गां जमीन अधिग्रहण की आग में सुलग रहा था। और उत्तर प्रदेश शासन

और प्रशासन का दमनात्मक रवैया सुर्खियों में था। जिसे कांग्रेस ने पूरी तरह कैश किया

और राहुल ने इस पुलिसिया अत्याचार को कम करने की सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया।

यही मुद्दा उठाकर राहुल ने अधिवेशन के जरिए प्रदेश के किसानों तक पहुंचने की कोशिश

की। और गांव गांव जाने का एलान किया।

आम चुनाव 2009 में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद कांग्रेस अब लखनऊ की कुर्सी

पाने की बाट जोह रही है। वर्तमान में कांग्रेस के पास उप्र की 80 लोकसभा सीटों में से 21

सीटें हैं जोकि 2004 में सिर्फ 4 थीं।वहीं अगर विधान सभा सीटों की बात करे तो वर्तमान में

कांग्रेस के पास सिर्फ 19 विधायक हैं। अब जहां एक साल का समय रह गया है तो कांग्रेस

ने कवायद शुरू कर दी है। मुलायम सिंह के गढ़ मैनपुरी में भारी भीड़ के साथ जनसभा करके

कांग्रेस ने चेतावनी दे दी है। फिरोजाबाद लोक सभा सीट पर राज बब्बर की जीत के बाद

कांग्रेस का मन बढ़ गया है वह अब मुलायम के गढ़ में ही सेंध लगाने की कोशिश में है।

राजबब्बर ने फिरोजाबाद से मुलायम की पुत्रवधु को 70000 से भी अधिक मतोमं से हराया

था। जो वाकई में कांग्रेस के लिए बड़ी जीत और सपा के लिए शर्मनाक हार थी।

अभी हाल ही में देश के 5 राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुए। जिसमें क्षेत्रीय दलों की

राजनीति ने बड़े दलों कोसत्ता के शिखर तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन

उत्तर प्रदेश में किन्ही दलों के बीच गठबंधन की राह नजर आ नहीं रही है। लोकसभा चुनावों

की तरह इन चुनावों में भी वह अकेले दम पर लड़ेगी। और उत्तर प्रदेश में सीधा मुकाबला

सपा और बसपा के बीच में है। भाजपा और कांग्रेस तीसरे और चौथे पायदान पर हैं। एक

अनुमान के अनुसार राज्य में 20 फीसदी आबादी अगड़ों की है, जिसमें से करीब 10 फीसदी

ब्राह्मण और 8 फीसदी राजपूत हैं। भाजपा का मुख्य आधार अगड़ी आबादी से है। दलितों की

आबादी करीब 23 फीसदी है, जिसके बड़े हिस्से पर बसपा का कब्जा है। आज जिस सोशियल

इंजीनियरिंग के बूते बसपा सत्ता में है उसी गठजोड़ केआधार पर कांग्रेस ने सालों साल

राज किया है। 90 के दशक मे भाजपा के सत्ता में आने का बड़ा कारण सवर्णों के साथ साथ

पिछणों के वोट बैंक पर गहरी पकड़ थी। वहीं सपा के सत्ता में आने का प्रमुख कारण यादव

मुस्लिम गठजोड़ था।

कांग्रेस की कोशिश अगड़ों में सेंध लगाने के साथ साथ मुस्लिमों और दलितों को जोड़ने

की है। राहुल की पूरी कोशिश किसानों और दलितों के हीरो बनने कीहै। दलितों के घर जाना,

उनके घर खाना खाना, रात बिताना, किसानों के बीच जाना उनकी रणनीति का हिस्सा है।

जो मुसलमान अयोध्या कांड के बाद बिखर गया था कांग्रेस उसे अपने साथ जोड़ने में जुटी

हुई है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या18 फीसदी है जो प्रदेश की 125 विधान सभा सीटों पर

निर्णायक भूमिका निभाता है।

उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के राजनीतिक पैंतरों के बावजूद भी कांग्स नेत्रत्व चरमराया

हुआ है। राहुल कितना भी कर लें लेकिन कांग्रेस का नम्बर भले से भाजपा से पहले आ जाए

माया-मुलायम के बाद ही आना है। इसकी वजह सिर्फ कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में ढीली जड़ें

होना नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए कोई चेहरा कांग्रेस के

पास नहीं है। राहुल गांधी स्वयं मुख्यमंत्री बनेंगे नहीं और उनके अलावा ऐसा कोई नेता है

नहीं जिसका उत्तर प्रदेश के वोटरों पर करिश्माई प्रभाव हो, जिसकी कनेक्टिविटी आम

वोटरों से सीधे तौर पर हो।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पूरे 28 साल बाद अपनी आम सभा का अधिवेशन इतने

जोश ओ खरोश के साथ कर रही है। इससे पहले सन् 1982 में कानपुर के नानाराव पार्क में

कांग्रेस का उत्तर प्रदेश अधिवेशन हुआ था। तब इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में थीं। उसके

बाद अब से 2 वर्ष पहले एक अधिवेशन कानपुर के इसी मैदान में हुआ था लेकिन तब उस

अधिवेशन में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस स्तर पर भाग नहीं लिया था। जरूर ही ये 2009

आम चुनाव में मिली सफलता का प्रमाण था जो इतने बड़े नेता कांग्रेस के मंच पर एक साथ

मौजूद थे।

अब देखना दिलचस्प होगा कि अगले साल हो रहे विधान सभा चुनावों में जनता किस ओर

झुकती है। ऐसे में जब कांग्रेस घोटालों के दंश से घिरी हुई है, माया के मुर्ति प्रेम से जनता

त्रस्त आ चुकी है, मुलायम पर परिवार प्रेम भारी है, और भाजपा के पास कोई नेतृत्व नहीं है

जिसके बूते वह प्रदेश में चुनाव लड़ सके।

Wednesday, May 4, 2011

ये कैसी डिप्लोमेसी

पिछले दिनों खबर आई कि दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने देशवासियों से गुहार लगा रहे हैं। उन्होंने अमेरिकी बीमारों से अपील की कि सस्ता इलाज कराने के लिए भारत या फिलीपिंस न जाएं। और अपने ही देश में इलाज कराएं। उनकी इस बात का सीधा मतलब अमेरिकी डॉलर से था जो इलाज के बहाने देश से बाहर न जाकर अमेरिका में ही रहे। उनकी ये अपील जायज भी हैं क्यों देश का पैसा भला बाहर भेजा जाए।

पिछले साल यूनाइटेड नेशन्स के सभी देशों के राष्ट्रप्रमुख भारत दौरे पर आए। और सभी ने भारत से अरबों के सौदे किए। उनमें से एक अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भी थे। वे नवम्बर में अपनी पत्नी मिशेल ओबामा के साथ भारत आए। ऐसा अमूमन देखा ही जाता है कि कोई भी राष्ट्रपति अपनी पत्नी के साथ ही विदेश यात्रा पर जाता है। लेकिन यहां कुछ अलग था ओबामा अपने साथ एक या दो नहीं बल्कि पूरे दो सौ अमेरिकी कारोबारी साथ लाए। ऐसे में वे सबसे ताकतवर राष्ट्र के राष्ट्रपति कम एक व्यापारी ज्यादा लग रहे थे।

यात्रा के पहले दिन ही उन्होंने अमेरिकी और भारतीय कम्पनियों के बीच दस अरब डॉलर के बीस समझौते किए। दस अरब डॉलर मतलब पांच हजार करोड़ रुपये। इतनी बड़ी रकम सुनकर लगता है जरूर भारत के पाले में बहुत सारे फायदे आए होंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका ‍सीधा फायदा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका को हुआ और इस सौदे के साथ अमेरिका में ५४००० नई नौकरियों का जन्म हुआ।
बात ये है कि जिस देश के बीमारों को ओबामा भारत जाने से रोक रहे हैं उसी देश की मौजूदा तरक्की में भारत और भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व के सबसे ताकतवर देश की जड़ें कहां खड़ीं हैं। एक नजर इन आंकड़ों पर भी डाल लेते हैं
अमेरिकी बीमारों के इलाज के लिए ३८ फीसदी डॉक्टर भारतीय हैं।
१२ फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं।
नासा के अंदर ३६ फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं।
सोफ्टवेयर कम्पनी माइक्रोसोफ्ट के अंदर ३४ फीसदी भारतीय हैं।
ऊंची डिग्री प्राप्त करने वालों में ४० फीसदी भारतीय ही हैं।
होटल रेस्तरां व्यवसाय में भी ३५ फीसदी भारतीय हैं।
जबकि ५० फीसदी बड़े होटल भारतीयों के ही हैं।
इन सब आंकड़ों को देखने के बाद आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिका की तरक्की में भारतीयों का कितना महत्वपूर्ण योगदान है। उसके बावजूद भी भारत और अमेरिका के रिश्ते उतने मधुर नहीं रहे जितने कि हो सकते थे। एशियाई देशों पर अपनी हुकूमत चलाने के लिए वह हमेशा आतंकवाद से त्रस्त पाकिस्तान को भारत के खिलाफ हमेशा समर्थन करता रहा। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के अरबों डॉलर की मदद की गई यह जानते हुए भी कि यह रकम भारत के खिलाफ इस्तैमाल की जा रही है। और दूसरी तरफ वह भारत को हमेशा डिप्लोमेसी का पाठ पढ़ाता रहा है।
चाहे वह कश्मीर मसला हो या मुम्बई हमला अमेरिका का हमेशा दोगुला रूप देखने को मिला। अपनी भारत यात्रा के दौरान ओबामा सबसे पहले मुम्बई के उसी ताज होटल पहुंचे जहां पाकिस्तानी आतंकवादियों ने नरसंहार किया था। गेट वे औफ इंडिया से अपनी स्पीच के दौरान उन्होंने अपनी और भारत की आतंक के खिलाफ एकजुटता का व्याख्यान तो किया लेकिन आतंक के पनाहगार पाक के बारे में कुछ नहीं कहा। चरमपंथ के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के सम्बंधों को लेकर भारत हमेशा आशंकित रहा है।
पाकिस्तान में स्थिरता लाने के नाम पर अमरीका ख़ुद ही वहाँ के सैनिक शासकों को मदद मुहैया कराता रहा है। ये वही लोग हैं जो भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे हैं. वैसे भी अमरीका को अफ़गानिस्तान जैसे मामलों में पाकिस्तान के मदद की दरकार है।
आतंकवाद कश्मीर पाकिस्तान भोपाल त्रास्दी के दोषी वारेन एंडरसन मुम्बई हमले के दोषी रिचर्ड हेडली कई ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर भारत अमेरिका की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखता है।
जहां मैक्सिको की खाड़ी में हुए तेल रिसाव को लेकर अमेरिका ने अरबों डॉलर का मुआवजा लिया वहीं भोपाल त्रास्दी के पीड़ितो को २६ साल बाद भी न्याय मिल नहीं पाया है।
9/11 के दोषी ओसामा को मौत के घाट चढ़ाकर अमेरिका ने बदला ले लिया है लेकिन 26/11 के दोषी हाफिजं सईद और अन्य अब भी पाकिस्तान में खुले सांड की तरह घूम रहे हैं और भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं।
कश्मीर मुद्दे पर सीधे कार्यवाही करने के वजाय वह हमेशा तटस्थ भूमिका निभाने की वकालत करता रहा है।

जिस देश को विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति एंव सबसे शक्तिशाली देश बनाने में भारत और भारतीयों का इतना बड़ा योगदान हो। उस देश का भारत के प्रति ऐसा रुख कुछ हजम नही होता। भारत को किसी से उम्मीद न करके अपनी समस्यायें खुद ही सुलझानी होंगीं। अगर अमेरिका के भरोसे रहे तो वह हमेशा डिप्लोमसी का पाठ पढ़ाता रहेगा।

Thursday, April 28, 2011

about me [help]

I’m a _________, ________ and _________ (list three things that describe you, e.g. small business owner, writer, cat lover, devoted father) from __________ (list the general area you live in, e.g. country, state or city, but don’t ever give your address). I’m here writing my Myspace About Me section because ____________ (your reason for signing up on MySpace).

The things I love most in life are ______, _________ and ________ (list your favorite things, e.g. hanging with friends, scrapbooking, photography, cycling, family, my kids). I’ve been ___________ (one of your hobbies) for ____ years, and I really love it.

On week days you’ll usually find me ____________ (something that describes you at work or school, e.g. working as a landscaper, pretending to pay attention in school, looking after my kids, at the library, teaching kindergarten kids). On the weekends I like to ________ and ________.

My idea of the perfect day would start with _________. And then I’d _______. Later I’d __________. And I’d top it all off by ________.

The kinds of people I enjoy the most are ones who are ________ and ________. That’s important to me because __________.

My dreams for the future are ________, _________ and _________. So what am I doing to achieve those dreams? Well, how about ____________, for starters. And also, ______________. One thing I need to do more of is ___________.

Wednesday, March 2, 2011

Love's blindness

Now do I know that Love is blind, for I
Can see no beauty on this beauteous earth,
No life, no light, no hopefulness, no mirth,
Pleasure nor purpose, when thou art not nigh.
Thy absence exiles sunshine from the sky,
Seres Spring's maturity, checks Summer's birth,
Leaves linnet's pipe as sad as plover's cry,
And makes me in abundance find but dearth.
But when thy feet flutter the dark, and thou
With orient eyes dawnest on my distress,
Suddenly sings a bird on every bough,
The heavens expand, the earth grows less and less,
The ground is buoyant as the ether now,
And all looks lovely in thy loveliness.


BY - ALFRED AUSTIN

Thursday, February 10, 2011

दिल्ली का एक और दर्द

अगर हम दिल्ली की बात करते हैं तो सबसे पहले क्या तस्वीर हमारी हमारी आंखों में उभर कर आती है
वही बड़े बड़े मॉल्स चिकनी सपाट सड़कें फ्लाईओवर फ्लाईओवर के ऊपर फ्लाईओवर मैट्रो रेल क्नौट प्लेस इंडिया गेट संसद भवन राष्ट्रपति भवन न जाने क्या क्या हमारे सामने मण्डराने लगता है।
लेकिन हम में से कितने लोग हैं जो दिल्ली के गावों को भी जानते हैं
दिल्ली में गांव कैसे हो सकते कुछ लोग तो यह भी सोचते होंगे
जी हां जिस जमीन पर आज दिल्ली खड़ी है वह कभी गांव की ही जमीन हुआ करती थी लेकिन इस ग्लोब्लाइजेशन के दौर में गांव की जगह कंक्रीट के जंगलों ने ले ली है।
लेकिन गांव आज भी हैं जिन्होंने दिल्ली बसाई आज वो अपनी बदहाली पर खून के आंसू बहा रहे हैं।

महंगे महंगे वाहनों के बोझ तले दबे इस शहर में शुद्ध औक्सीजन तो दिन में लालटेन लेकर भी निकलो तो न मिलेगी। तो सोचा दिल्ली के किसी गांव की सैर करके आते हैं और निकल पड़े दिल्ली के गांव देवली की तरफ।
लेकिन तस्वीर बद से बद्तर निकली। गांव में लोग इस तरह से रह रहे हैं जैसे एक बंद कोठरी में भूसा भर दिया गया हो। देश का जनसंख्या घनत्व कुछ भी हो लेकिन यहां के आंकड़े उस घनत्व से कोई इत्तफाक़ नहीं रखते।
गांव में घुसते ही पीपल का पेड़ दिखा जो २४ घण्टे औक्सीजन मुफ्त में प्रोवाइड कराता है। तो सोचा क्यों न यहीं औक्सीजन की दो सांसें ले लीं जाए। मोटर साइकल को सड़क किनारे लगाते हुए पीपल के नीचे पहुंचा।
वहीं एक पान की दुकान देखी जिससे गांव के हाल चाल लेने की सूझी और सिग्रेट लेने के के बहाने ही उससे बात करने लगा। जैसे जैसे मैंने उससे बात की उसने बताया कि उसका नाम रामफल है और पिछले १७ सालों से परिवार के साथ दिल्ली में ही किराए की अवैध कॉलोनी में रहता है। बीते उन सालों में हर चुनाव में उसने वोट का कर्ज अदा किया लेकिन नहीं पता किसे किया। उसे यह भी नहीं पता कि उसके इलाके का निगम पार्षद और विधायक कौन है। ज्यूं ज्यूं में उससे बात करता लोगों का हुजूम जुड़ने लगा और सभी लोग अपने अपने तरीके से गांव की तस्वीर बयां करने लगे।

कहते हैं बीते दो दशको में सब कुछ बदल गया दिल्ली की इमारतें आसमान छूने लगीं खुली सपाट सड़कें बन गईं फ्लाईओवर दर फ्लाईओवर बन गये दिल्ली मैट्रो भी आ गई और भी कई बड़ी उपलब्धियां दिल्ली के साथ जुड़ गईं।
साथ ही साथ गांव भी बदला लेकिन शहर नहीं बना तो शहर से कम भी नहीं रहा लेकिन लोग उसे देवली गांव के नाम से ही जानते और पुकारते हैं। वहां खड़े लोगों ने मुझे गांव के अंदर तक जाने से मना किया कहा कि भइया सड़क यहीं खत्म हो जाती है इसके आगे तो बड़े बड़े खड्डे हैं। आपको चोट लग सकती है मोटर साइकल को भी नुकसान हो सकता है। कहते हैं अभी सर्दी के दिनों में तो खड्डे नजर आ भी जाते हैं लेकिन बारिश के दिनों में सड़क नाले में तब्दील हो जाती है। गांव के भीतर से जल निकासी का कोई प्रबंध नहीं है पानी पूरे चौमासे यहीं सड़कों पर ही भरा रहता है। जिस पर सिवाय बीमारियों के कुछ और नहीं तैरता। संगम बिहार का भी सारा गंदा पानी देवली गांव की ही तरफ आता है। गांव के लोग तो अब गांव छोड़ शहर चले गये यहां तो बस प्रवासी कामगर मजदूर ही रहते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूर रेडड़ी लगाने वाले जैसे लोग ही रहते हैं।


यहां के पूर्व निगम पार्षद और वर्तमान दिल्ली प्रदेश के भाजपा कोषाध्य ‌‌‌‍‍नाम कहते हैं कि स्तिथि बदतर से भी गई गुजरी हो चली है। गांव का आदमी बेवसी और नर्क की ज़िंदगी बसर करने को मजबूर है। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।
यहां चोर उचक्कों का राज है गरीब मजदूर मजबूर है। कभी ऐसा भी होता है कि घर आया मेहमान आपसे पानी मांगे और बार बार आप उसके हाथ में कोल्ड ड्रिंक थमा दें। चाय पीने और पिलाने की बात करने लगें। जिल्लत की ज़िंदगी का एहसास तो तब होता है जब मेहमान को हम बिना पानी पिलाए ही घर से रवाना कर देते हैं। रहीम का दोहा
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे मोती मानस चून।।

का एहसास किसी हो चाहे न हो लेकिन देवली गांव के निवासियों को जरूर है।
साथ ही साथ कहते हैं कि जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी तो कॉंग्रेस का विधायक था जब कॉंग्रेस की सरकार थी तो बीजेपी का विधायक था जिस वजह से कभी तालमेल बैठ नहीं पाया।
लेकिन अब जबकि सरकार और बिधायक दोंनों ही कॉंग्रेस के हैं तो सरकार कोई सकारात्मक पहल क्यों नहीं करती। गांव में सड़क नहीं है बिजली नहीं है पीने का शुद्ध पानी नहीं है लोग पानी खरीदकर ही जीवन यापन करते हैं अशुद्ध जल निकासी के लिए नाला नहीं है किसी भी इमरजैंसी की स्तिथि में गांव से निकलने का कोई दूसरा रास्ता तक नहीं है ऐसी कई गम्भीर समस्याओं का ज़िक्र किया।



दिल्ली में एसे ही सेकड़ों गाव हैं जिनकी खैर खबर लेने वाला कोई नहीं। दिल्ली में कुछ भी हो तो टीवी पर सबसे पहले दौड़ने लगता है।
कहीं सड़क धसती है तो सब टीवी चैनल टीआरपी मैराथन में लग जाते हैं लेकिन जहां सड़क ही नहीं वहां की खबर कौन ले शायद ओबी वैन वहां तक न पहुंचती होगी।
एक दिन पानी नहीं आता या कटौती कर दी जाती है टीवी पर दिल्ली के पानी की कमी आ जाती है लेकिन जहां पानी कभी नहीं आता वहां की सुध कोई क्यूं ले पानी खरीद कर खा पी नहा धो तो लेते ही हैं वे लोग।
ऐसा लगता है जैसे आसमान छूती इन इमारतो के बोझ से गांव कहीं दब गया है। जैसे उसकी परछईं में कहीं छुप गया है।
अगर यही हालात रहे तो आज हम सेव टाइगर आंदोलन चला रहे हैं तो कल सेव विलेज आंदोलन चलाएंगे।
वरना गिद्दों की तरह ही कहेंगे कि दिल्ली में गांव थे।

Friday, October 15, 2010

cwg जांच के मायने

आखिरकार राष्ट्रमण्डल खेल सफलता एवं शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो गये। ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी में रंगारंग भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुरूप कार्यक्रम पेश किये गये, जिसने विश्व भर के करोड़ों दर्शकों का मन मोह लिया, भारतीय सभ्यता को इक अलग नई पहचान मिली और दुनिया ने जाना। इंटरपोल ने भारतीय सुरक्षा इजेंसियों की तारीफ की, OC चेयरमेन फेनेल ने भी आयोजन और व्यवस्थाओं की तारीफ की, विदेशी इथलीटों ने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं का भरपूर आनंद लिया और समापन के साथ ही अपने देशों को रवाना हो गए।
लेकिन इन सब के बावजूद एक सवाल यह उठता है कि 3 अक्टूबर से पहले जो पैसे के बंदरबांट और लूटखसोटी का मामला सामने आया था, और जिन्हें इन खेलों के आयोजन का जिम्मा सौंपा गया था क्या उन पर भारत सरकार और न्याय पालिका उचित कदम उठा पाएंगे, उन दोषियों पर कार्यवाही करेंगे जिन्होने भारत की छवि को धूमिल किया था?
मीडिया के मुताबिक खेलों में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए गये हैं। जो कि विश्व भर में किसी खेल आयोजन में खर्च की गई अब तक की सबसे बड़ी धन राशि है। 2003 में जब भारत को इन खेलों की मेज़बानी सौंपी गई थी तब यह बजट मात्र 767 करोड़ रुपये था जो बाद में चलकर एक लाख करोड़ तक पहुंचा। एक नज़र डाल लेते हैं 767 करोड़ से 1,00,000 करोड़ के इस लम्बे सफर पर।


वर्ष सरकार बजट अनुमानित कमाई
2003 NDA 767 cr 1000 cr
2005 UPA 1260 cr
2008 UPA 11494 cr 15000 cr
2009 UPA 21700 cr 35000 cr
2010 UPA 27894 cr 40000 cr
2010 UPA 44000 cr 1,00,000 cr
2010 UPA 1,00,000 cr 4-5 lakh cr

जिस तरीके से इस बजट ने तरक्की की उसी तरीके से भ्रष्टाचार की बू भी बढ़ने लगी। और भारत का यह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है।

केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस सांसद अय्यर ने कहा, “प्रधानमंत्री ने कहा है कि खेल ख़त्म होते ही जो ग़लतियां हुईं हैं...जो ख़ामियां रहीं हैं, उनकी जांच की जाएगी और यदि किसी किस्म का भ्रष्टाचार हुआ होगा तो उसको सामने लाएंगे और सख़्त दंड दिया जाएगा. मैं उम्मीद रखता हूं कि अब जबकि ये सर्कस ख़त्म हो चुका है जांच शुरू की जानी चाहिए।

सवाल यह है कि न्याय पालिका आम जनता के टैक्स के पैसे के दुर्पुयोग के दोषियों को सजा दे पाएगा?
और क्या इन दोषियों पर कार्यवाही करने का मतलब धूल में लाठी चलाने जैसा है?
पहले से ही हजारों केस कतार में हैं, कहीं इन पर भी कार्यवाही करना समय और की धन की बर्बादी तो नहीं?