जून की भीषण गर्मी पड़ रही है, मौसम गर्म है, लू चल रही है, कोई घर से निकलना
ही नहीं चाहता। लेकिन इस गर्मी का असर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर बिल्कुल भी नहीं
है। विधान सभा चुनाव होने में अभी पूरा एक वर्ष बाकी है लेकिन चुनावी बिसात बिछ चुकी
है। सभी दल तैयारियौं में जुट गए हैं मानो चुनाव होने वाले हों। उत्तर प्रदेश की 403 विधान
सभा सीटों वाली विधान सभा के लिए सभी ने अपने प्रत्याशियों की सूची तैयारी करनी शुरू
कर दी है। सभी को लखनऊ की कुर्सी चाहिए, दिल्ली का रास्ता जो लखनऊ से होकर जाता
है। निशाना सिर्फ 2012 उप्र चुनाव नहीं है चूंकि उत्तर प्रदेश भारतीय संसदीय राजनीति
का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां से लोकसभा की 543 में से 80 सीटों का चयन होता जो किसी भी
अन्य प्रदेश से ज्यादा हैं। चुनाव 2012 के परिणाम आम चुनाव 2014 की दिशा तय करेंगे कि
उत्तर प्रदेश का समर्थन किसे मिलने वाला है। इसलीए कोई भी दल कोई मौका छोड़ना नहीं
चाहता वोटरों को लुभाने के लिए। उत्तर प्रदेश की राजनीति ही ऐसी है कि हवा किस ओर
चलेगी और जनता किसे चुनेगी कुछ नहीं कह सकते।
लेकिन उत्तर प्रदेश का रिकॉर्ड रहा है, पिछले दो दशकों में सत्तारुढ़ दल कभी सत्ता
में वापस नहीं आया। और न ही किसी मुख्यमंत्री ने अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया
है। उत्तर प्रदेश की राजनीति का तकाजा ही यही है। यहां की राजनीति विकास, सुशासन,
भ्रष्टाचार मुक्त शासन, और कानून के भरोसे न चलकर धर्म सम्प्रदाय और जाति के
आधार पर चलती है। यही वजह है कि आजादी के बाद पिछले दो दशकों में कांग्रेस उत्तर
प्रदेश की सत्ता पर कभी काबिज नहीं हो पाई। लेकिन बनारस में हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस
कमैटी के 83वे अधिवेशन को देखकर लगता है कि कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन
वापस पाना चाहती है। पिछले 22 वर्षों मे उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रदेश में हाशिए पर पहुंच
गई है। और अब कांग्रेसी इसमें दोबारा जान फूंकने में जुट गए हैं। अधिवेशन को देखकर तो
ऐसा ही लगता है। सोनिया गांधी ने पहली बार सीधे तौर पर मायावती को निशाना बनाया।
ऐसा पहली बार हुआ था कि सोनिया ने सीध मायावती पर टिप्पड़ी की हो। उन्होने कहा जो
उत्तर प्रदेश अपने गौरवमयी इतिहास, कला, कवि, शायरों के लिए जाना जाता था वह अब
अपराधियों की शरण गाह बन गया है। उत्तर प्रदेश अब क्राइम प्रदेश के नाम से जाना
जाता है। वहीं राहुल गांधी ने अपने आप को किसानों और मजदूरों का नेता बताया और कदम
कदम पर उनका साथ देने का वायदा किया।
उन्होंने प्रदेस की कानून व्यवस्था, विकास के सवाल पर जनता का सहयोग मांगा और कहा
कि मैं अब गांव गांव जाऊंगा और लोगों की आवाज बनूंगा।
निश्चित रूप से कांग्रेस इन सवालों को लेकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में पूरे
जोश ओ खरोश के साथ उतरना चाहती है। और इन्हीं सवालों के जरिए अपनी आक्रामक और
जन सरोकारी छवि बनाकर अपने कार्यकर्ताओं मे नई जान फूंकनाचाहती है। जिससे पिछले
22 सालों से हाशिए पर पड़ी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में ला
सके।
जिस वक्त कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था वहीं दूसरी ओर दिल्ली के नजदीक नोएडा
का भट्टा परसोल गां जमीन अधिग्रहण की आग में सुलग रहा था। और उत्तर प्रदेश शासन
और प्रशासन का दमनात्मक रवैया सुर्खियों में था। जिसे कांग्रेस ने पूरी तरह कैश किया
और राहुल ने इस पुलिसिया अत्याचार को कम करने की सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया।
यही मुद्दा उठाकर राहुल ने अधिवेशन के जरिए प्रदेश के किसानों तक पहुंचने की कोशिश
की। और गांव गांव जाने का एलान किया।
आम चुनाव 2009 में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद कांग्रेस अब लखनऊ की कुर्सी
पाने की बाट जोह रही है। वर्तमान में कांग्रेस के पास उप्र की 80 लोकसभा सीटों में से 21
सीटें हैं जोकि 2004 में सिर्फ 4 थीं।वहीं अगर विधान सभा सीटों की बात करे तो वर्तमान में
कांग्रेस के पास सिर्फ 19 विधायक हैं। अब जहां एक साल का समय रह गया है तो कांग्रेस
ने कवायद शुरू कर दी है। मुलायम सिंह के गढ़ मैनपुरी में भारी भीड़ के साथ जनसभा करके
कांग्रेस ने चेतावनी दे दी है। फिरोजाबाद लोक सभा सीट पर राज बब्बर की जीत के बाद
कांग्रेस का मन बढ़ गया है वह अब मुलायम के गढ़ में ही सेंध लगाने की कोशिश में है।
राजबब्बर ने फिरोजाबाद से मुलायम की पुत्रवधु को 70000 से भी अधिक मतोमं से हराया
था। जो वाकई में कांग्रेस के लिए बड़ी जीत और सपा के लिए शर्मनाक हार थी।
अभी हाल ही में देश के 5 राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुए। जिसमें क्षेत्रीय दलों की
राजनीति ने बड़े दलों कोसत्ता के शिखर तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन
उत्तर प्रदेश में किन्ही दलों के बीच गठबंधन की राह नजर आ नहीं रही है। लोकसभा चुनावों
की तरह इन चुनावों में भी वह अकेले दम पर लड़ेगी। और उत्तर प्रदेश में सीधा मुकाबला
सपा और बसपा के बीच में है। भाजपा और कांग्रेस तीसरे और चौथे पायदान पर हैं। एक
अनुमान के अनुसार राज्य में 20 फीसदी आबादी अगड़ों की है, जिसमें से करीब 10 फीसदी
ब्राह्मण और 8 फीसदी राजपूत हैं। भाजपा का मुख्य आधार अगड़ी आबादी से है। दलितों की
आबादी करीब 23 फीसदी है, जिसके बड़े हिस्से पर बसपा का कब्जा है। आज जिस सोशियल
इंजीनियरिंग के बूते बसपा सत्ता में है उसी गठजोड़ केआधार पर कांग्रेस ने सालों साल
राज किया है। 90 के दशक मे भाजपा के सत्ता में आने का बड़ा कारण सवर्णों के साथ साथ
पिछणों के वोट बैंक पर गहरी पकड़ थी। वहीं सपा के सत्ता में आने का प्रमुख कारण यादव
मुस्लिम गठजोड़ था।
कांग्रेस की कोशिश अगड़ों में सेंध लगाने के साथ साथ मुस्लिमों और दलितों को जोड़ने
की है। राहुल की पूरी कोशिश किसानों और दलितों के हीरो बनने कीहै। दलितों के घर जाना,
उनके घर खाना खाना, रात बिताना, किसानों के बीच जाना उनकी रणनीति का हिस्सा है।
जो मुसलमान अयोध्या कांड के बाद बिखर गया था कांग्रेस उसे अपने साथ जोड़ने में जुटी
हुई है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या18 फीसदी है जो प्रदेश की 125 विधान सभा सीटों पर
निर्णायक भूमिका निभाता है।
उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के राजनीतिक पैंतरों के बावजूद भी कांग्स नेत्रत्व चरमराया
हुआ है। राहुल कितना भी कर लें लेकिन कांग्रेस का नम्बर भले से भाजपा से पहले आ जाए
माया-मुलायम के बाद ही आना है। इसकी वजह सिर्फ कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में ढीली जड़ें
होना नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए कोई चेहरा कांग्रेस के
पास नहीं है। राहुल गांधी स्वयं मुख्यमंत्री बनेंगे नहीं और उनके अलावा ऐसा कोई नेता है
नहीं जिसका उत्तर प्रदेश के वोटरों पर करिश्माई प्रभाव हो, जिसकी कनेक्टिविटी आम
वोटरों से सीधे तौर पर हो।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पूरे 28 साल बाद अपनी आम सभा का अधिवेशन इतने
जोश ओ खरोश के साथ कर रही है। इससे पहले सन् 1982 में कानपुर के नानाराव पार्क में
कांग्रेस का उत्तर प्रदेश अधिवेशन हुआ था। तब इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता में थीं। उसके
बाद अब से 2 वर्ष पहले एक अधिवेशन कानपुर के इसी मैदान में हुआ था लेकिन तब उस
अधिवेशन में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस स्तर पर भाग नहीं लिया था। जरूर ही ये 2009
आम चुनाव में मिली सफलता का प्रमाण था जो इतने बड़े नेता कांग्रेस के मंच पर एक साथ
मौजूद थे।
अब देखना दिलचस्प होगा कि अगले साल हो रहे विधान सभा चुनावों में जनता किस ओर
झुकती है। ऐसे में जब कांग्रेस घोटालों के दंश से घिरी हुई है, माया के मुर्ति प्रेम से जनता
त्रस्त आ चुकी है, मुलायम पर परिवार प्रेम भारी है, और भाजपा के पास कोई नेतृत्व नहीं है
जिसके बूते वह प्रदेश में चुनाव लड़ सके।
Monday, May 30, 2011
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