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Wednesday, May 4, 2011

ये कैसी डिप्लोमेसी

पिछले दिनों खबर आई कि दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने देशवासियों से गुहार लगा रहे हैं। उन्होंने अमेरिकी बीमारों से अपील की कि सस्ता इलाज कराने के लिए भारत या फिलीपिंस न जाएं। और अपने ही देश में इलाज कराएं। उनकी इस बात का सीधा मतलब अमेरिकी डॉलर से था जो इलाज के बहाने देश से बाहर न जाकर अमेरिका में ही रहे। उनकी ये अपील जायज भी हैं क्यों देश का पैसा भला बाहर भेजा जाए।

पिछले साल यूनाइटेड नेशन्स के सभी देशों के राष्ट्रप्रमुख भारत दौरे पर आए। और सभी ने भारत से अरबों के सौदे किए। उनमें से एक अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भी थे। वे नवम्बर में अपनी पत्नी मिशेल ओबामा के साथ भारत आए। ऐसा अमूमन देखा ही जाता है कि कोई भी राष्ट्रपति अपनी पत्नी के साथ ही विदेश यात्रा पर जाता है। लेकिन यहां कुछ अलग था ओबामा अपने साथ एक या दो नहीं बल्कि पूरे दो सौ अमेरिकी कारोबारी साथ लाए। ऐसे में वे सबसे ताकतवर राष्ट्र के राष्ट्रपति कम एक व्यापारी ज्यादा लग रहे थे।

यात्रा के पहले दिन ही उन्होंने अमेरिकी और भारतीय कम्पनियों के बीच दस अरब डॉलर के बीस समझौते किए। दस अरब डॉलर मतलब पांच हजार करोड़ रुपये। इतनी बड़ी रकम सुनकर लगता है जरूर भारत के पाले में बहुत सारे फायदे आए होंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका ‍सीधा फायदा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका को हुआ और इस सौदे के साथ अमेरिका में ५४००० नई नौकरियों का जन्म हुआ।
बात ये है कि जिस देश के बीमारों को ओबामा भारत जाने से रोक रहे हैं उसी देश की मौजूदा तरक्की में भारत और भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व के सबसे ताकतवर देश की जड़ें कहां खड़ीं हैं। एक नजर इन आंकड़ों पर भी डाल लेते हैं
अमेरिकी बीमारों के इलाज के लिए ३८ फीसदी डॉक्टर भारतीय हैं।
१२ फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं।
नासा के अंदर ३६ फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं।
सोफ्टवेयर कम्पनी माइक्रोसोफ्ट के अंदर ३४ फीसदी भारतीय हैं।
ऊंची डिग्री प्राप्त करने वालों में ४० फीसदी भारतीय ही हैं।
होटल रेस्तरां व्यवसाय में भी ३५ फीसदी भारतीय हैं।
जबकि ५० फीसदी बड़े होटल भारतीयों के ही हैं।
इन सब आंकड़ों को देखने के बाद आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिका की तरक्की में भारतीयों का कितना महत्वपूर्ण योगदान है। उसके बावजूद भी भारत और अमेरिका के रिश्ते उतने मधुर नहीं रहे जितने कि हो सकते थे। एशियाई देशों पर अपनी हुकूमत चलाने के लिए वह हमेशा आतंकवाद से त्रस्त पाकिस्तान को भारत के खिलाफ हमेशा समर्थन करता रहा। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के अरबों डॉलर की मदद की गई यह जानते हुए भी कि यह रकम भारत के खिलाफ इस्तैमाल की जा रही है। और दूसरी तरफ वह भारत को हमेशा डिप्लोमेसी का पाठ पढ़ाता रहा है।
चाहे वह कश्मीर मसला हो या मुम्बई हमला अमेरिका का हमेशा दोगुला रूप देखने को मिला। अपनी भारत यात्रा के दौरान ओबामा सबसे पहले मुम्बई के उसी ताज होटल पहुंचे जहां पाकिस्तानी आतंकवादियों ने नरसंहार किया था। गेट वे औफ इंडिया से अपनी स्पीच के दौरान उन्होंने अपनी और भारत की आतंक के खिलाफ एकजुटता का व्याख्यान तो किया लेकिन आतंक के पनाहगार पाक के बारे में कुछ नहीं कहा। चरमपंथ के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के सम्बंधों को लेकर भारत हमेशा आशंकित रहा है।
पाकिस्तान में स्थिरता लाने के नाम पर अमरीका ख़ुद ही वहाँ के सैनिक शासकों को मदद मुहैया कराता रहा है। ये वही लोग हैं जो भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे हैं. वैसे भी अमरीका को अफ़गानिस्तान जैसे मामलों में पाकिस्तान के मदद की दरकार है।
आतंकवाद कश्मीर पाकिस्तान भोपाल त्रास्दी के दोषी वारेन एंडरसन मुम्बई हमले के दोषी रिचर्ड हेडली कई ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर भारत अमेरिका की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखता है।
जहां मैक्सिको की खाड़ी में हुए तेल रिसाव को लेकर अमेरिका ने अरबों डॉलर का मुआवजा लिया वहीं भोपाल त्रास्दी के पीड़ितो को २६ साल बाद भी न्याय मिल नहीं पाया है।
9/11 के दोषी ओसामा को मौत के घाट चढ़ाकर अमेरिका ने बदला ले लिया है लेकिन 26/11 के दोषी हाफिजं सईद और अन्य अब भी पाकिस्तान में खुले सांड की तरह घूम रहे हैं और भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं।
कश्मीर मुद्दे पर सीधे कार्यवाही करने के वजाय वह हमेशा तटस्थ भूमिका निभाने की वकालत करता रहा है।

जिस देश को विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति एंव सबसे शक्तिशाली देश बनाने में भारत और भारतीयों का इतना बड़ा योगदान हो। उस देश का भारत के प्रति ऐसा रुख कुछ हजम नही होता। भारत को किसी से उम्मीद न करके अपनी समस्यायें खुद ही सुलझानी होंगीं। अगर अमेरिका के भरोसे रहे तो वह हमेशा डिप्लोमसी का पाठ पढ़ाता रहेगा।

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